“Piyush Goyal ने कहा- ‘RBI को ब्याज दरें घटानी चाहिए’, फिर शक्तिकांत दास ने दिया ऐसा जवाब”

Piyush Goyal: भारत की मौद्रिक नीति और ब्याज दरों को लेकर केंद्रीय सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बीच अक्सर मंथन और चर्चाएं होती रहती हैं। लेकिन हाल ही में एक दिलचस्प वाकया सामने आया, जब सरकार और आरबीआई के दृष्टिकोण ने सार्वजनिक मंच पर एक-दूसरे से भिन्नताएं प्रकट कीं।

 

यह घटना उस समय हुई जब केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पियूष गोयल और आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास दोनों CNBC TV-18 ग्लोबल लीडरशिप समिट में उपस्थित थे। जब दोनों ने देश में ब्याज दरों पर अपने-अपने विचार रखे, तो एक दिलचस्प स्थिति उत्पन्न हुई, जिस पर आरबीआई गवर्नर द्वारा दिया गया जवाब काफी हैरान करने वाला था।

पियूष गोयल ने क्यों कहा- ब्याज दरें घटानी चाहिए?

ग्लोबल लीडरशिप समिट में केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए, और यह उनकी व्यक्तिगत राय है। पियूष गोयल का कहना था कि दिसंबर तक मुद्रास्फीति दरों में गिरावट आ जाएगी, और इसके बाद आम लोगों को कम कीमतों का फायदा मिलने लगेगा। उन्होंने यह भी कहा कि वह खाद्य मुद्रास्फीति के बढ़ने को ब्याज दरों में कटौती का कारण मानने को सही नहीं मानते।

पियूष गोयल का मानना था कि जब मुद्रास्फीति दरें घटेंगी, तो ब्याज दरों में भी कमी की संभावना बन सकती है, जो अर्थव्यवस्था और आम नागरिकों के लिए फायदेमंद साबित होगी। उनके इस बयान से यह साफ दिखता है कि सरकार की उम्मीद है कि आरबीआई अपने मौजूदा कड़े ब्याज दरों को कम कर सकता है, ताकि आर्थिक गतिविधियों को और बढ़ावा मिले और बाजार में तरलता बनी रहे।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास का क्या था जवाब?

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास पियूष गोयल के इस बयान पर मुस्कुराए और फिर उन्होंने कहा, “अगली मौद्रिक नीति दिसंबर के पहले सप्ताह में आएगी और मैं तब अपने विचार और टिप्पणियाँ प्रस्तुत करूंगा। धन्यवाद।”

शक्तिकांत दास का यह जवाब स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि आरबीआई मौद्रिक नीति से जुड़े निर्णयों को लेकर बहुत सतर्क रहता है और वर्तमान में वे किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से बच रहे हैं। उनका यह भी कहना था कि आने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों के बारे में उचित निर्णय लिया जाएगा, जो देश की आर्थिक स्थिति और मुद्रास्फीति के आंकड़ों के आधार पर होगा।

आरबीआई ने अपने रुख को किया था बदलने का ऐलान

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने कीनोट संबोधन में यह भी कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने अक्टूबर में जारी अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों को 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा, जबकि पहले “आवास की वापसी” के स्थान पर “न्यूट्रल” रुख अपनाया था। इसका मतलब यह है कि आरबीआई अब पहले के मुकाबले कम सख्त रुख अपनाएगा।

आरबीआई की यह नीति अब भी उच्च मुद्रास्फीति के दबाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए बनी हुई है। इसके अलावा, अमेरिका में ब्याज दरों में हो रहे परिवर्तनों का भी भारतीय रिजर्व बैंक की नीति पर असर पड़ सकता है। यह संभावना जताई जा रही है कि दिसंबर में होने वाली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में आरबीआई ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा और वे इसे स्थिर बनाए रखेंगे।

क्या है मुद्रास्फीति और ब्याज दरों का संबंध?

मुद्रास्फीति और ब्याज दरों के बीच एक गहरा संबंध होता है। जब मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि करता है ताकि कर्ज महंगा हो और खर्च में कमी आए, जिससे बाजार में मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सके। वहीं, जब मुद्रास्फीति कम होती है, तो ब्याज दरों को घटाकर बाजार में तरलता को बढ़ाने और आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने की कोशिश की जाती है।

भारत में पिछले कुछ महीनों से मुद्रास्फीति का दबाव बना हुआ था, लेकिन सरकार और आरबीआई द्वारा कई कदम उठाए जाने के बाद स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिला है। केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल के अनुसार, दिसंबर तक मुद्रास्फीति में और गिरावट आ सकती है, जिससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि ब्याज दरों में भी कमी हो सकती है। हालांकि, आरबीआई गवर्नर ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट किया कि वे दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद ही कोई फैसला लेंगे।

अमेरिका में ब्याज दरों का असर भारत पर

एक और महत्वपूर्ण पहलू है जो आरबीआई के निर्णय को प्रभावित करता है, वह है अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियां। अमेरिका में ब्याज दरों में बदलाव का सीधा असर वैश्विक बाजारों पर पड़ता है। जब अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो विदेशी निवेशकों के लिए भारत जैसे विकासशील देशों में निवेश महंगा हो सकता है। इसके चलते भारत में मुद्रा विनिमय दरों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति पर पुनः विचार करना पड़ सकता है।

भारत में ब्याज दरों और मुद्रास्फीति को लेकर सरकार और आरबीआई के बीच विचारों की भिन्नता कोई नई बात नहीं है। हालांकि, दोनों संस्थाएं देश की आर्थिक स्थिति को लेकर एक समान लक्ष्य की ओर काम करती हैं। जहां एक ओर पियूष गोयल ने ब्याज दरों में कमी की जरूरत को महसूस किया, वहीं आरबीआई गवर्नर ने कहा कि यह निर्णय आगामी मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद लिया जाएगा।

अब यह देखना होगा कि आरबीआई दिसंबर में क्या निर्णय लेता है, खासकर जब वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं। सरकार और आरबीआई के बीच इस मंथन से यह स्पष्ट होता है कि दोनों का उद्देश्य देश की आर्थिक स्थिरता और विकास को प्राथमिकता देना है, लेकिन इसके लिए उठाए जाने वाले कदम बहुत सोच-समझकर और सही समय पर होने चाहिए।